सिकन्दरपुर (बलिया, उत्तर प्रदेश)। शिक्षा क्षेत्र नवानगर अन्तर्गत सिकन्दरपुर मालीपुर नहर मार्ग पर स्थित खटंगी में स्व० अमर सिंह लोक कल्याण समिति उत्तर प्रदेश द्वारा संचालित सरस्वती ज्ञान मंदिर अपने स्थापना के बाद से ही बच्चों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान कर रहा है। सरस्वती ज्ञान मंदिर ने बच्चों के लिए शिक्षा में दिशानिर्देश स्थापित करने का संकल्प लिया हैं। सरस्वती ज्ञान मंदिर का उद्देश्य है कि बच्चों को न केवल शिक्षा में मास्टर कराया जाए, बल्कि उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में नए और रोचक गतिविधियों का अनुभव भी कराया जाए तथा उन्हें संस्कारवान शिक्षा भी दी जाए। ज्ञात हो कि आज से 10 वर्ष पूर्व प्रेम सिंह यादव के लीडरशिप में सरस्वती ज्ञान मंदिर की स्थापना हुई थीं। तभी से यें विद्यालय शिक्षा के क्षेत्र में नए मानक स्थापित करने के लिए जाना जाता हैं। इस समय इस विद्यालय में लगभग 44 गांवों के छात्र-छात्राएं संस्कारवान शिक्षा ग्रहण करते हैं। विद्यालय के प्रबंधक प्रेम सिंह यादव के संघर्षों की बात करें तो दस वर्ष पूर्व कानपुर जैसे शहर से आकर एक देहात परिक्षेत्र में शिक्षा की अलख जगाने के मामले में प्रेम सिंह यादव ने एक अलग ही विशिष्ट मुकाम हासिल किया हैं।
इनकी चर्चा सिर्फ खटंगी गांव में ही नहीं बल्कि पूरे सिकन्दरपुर शिक्षा क्षेत्र में होती रहती हैं। इस विद्यालय में सिर्फ बलिया ही नहीं बल्कि इटावा, कानपुर, उन्नाव, बाराबंकी, झांसी व जालौन के शिक्षक व शिक्षिकाएं बच्चों को संस्कारवान शिक्षा देने का कार्य अनवरत कर रहे हैं। बातचीत के दौरान सरस्वती ज्ञान मंदिर के प्रबंधक प्रेम सिंह यादव ने बताया कि शिक्षा के इस मंदिर में शिक्षक का स्थान मुख्य होता है तथा बालक का गौण। शिक्षक से यह आशा की जाती है कि वह बालक को मानसिक दृष्टि से विकसित करने के लिए अधिक से अधिक ज्ञान दे। ऐसे ज्ञान को प्राप्त करके बालक तोता तो अवश्य बन जाता है, परन्तु उसका सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता। कहां कि शिक्षा और संस्कार एक-दूसरे के पूरक हैं। संस्कार जीवन का सार है और शिक्षा जीवन का उपहार। संस्कार सही होने पर शिक्षा भी सही दिशा में होती है। संस्कारवान शिक्षा से व्यक्ति का सर्वांगीण विकास होता है। संस्कारवान शिक्षा से व्यक्ति का मानसिक, शारीरिक, सामाजिक, भावनात्मक, संस्कारिक और आध्यात्मिक विकास होता है। संस्कारों की ज़िम्मेदारी माता-पिता, परिजनों, और शिक्षकों की होती है। संस्कार व्यवहार, आचरण, सद्कर्म, और चारित्रिक उज्ज्वलता से आते हैं तथा शिक्षा के ज़रिए ही व्यक्ति विवेकशील और शिष्ट बनता हैं। विवेक से व्यक्ति को सही और गलत का चयन करने की क्षमता मिलती हैं। कहा कि शिक्षक को भी छात्र के मानसिक, शारीरिक, संवेगात्मक, नैतिक, और आध्यात्मिक विकास के लिए ज़िम्मेदार होना चाहिए। बताया कि सिर्फ दिखावे के लिए नहीं बल्कि जमीनी स्तर पर भी अच्छी शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध कराकर छात्रों का सर्वांगीण विकास किया जा सकता हैं।
रिपोर्ट- विनोद कुमार गुप्ता