हिन्दू धर्म और संस्कृति में सावन को सबसे पवित्र महीने का दर्जा हासिल है। इसे भगवान शिव का महीना कहा गया है। शास्त्रों के अनुसार प्राचीन काल में देवों ने असुर नाविकों, योद्धाओं, श्रमिकों की सहायता से समुद्र-मंथन का संयुक्त अभियान सावन के महीने में ही आरंभ किया था। इस मंथन से जो चौदह रत्न-लक्ष्मी, कामधेनु , उच्चैःश्रवा, चन्द्रमा, कौस्तुभ, कल्पवृक्ष, वारुणी, पारिजात, धन्वन्तरि, अमृत, ऐरावत,हलाहल आदि मिले थे, उनके बंटवारे में देवों और असुरों के बीच जम कर विवाद हुआ था।
देवों ने छल से बारह कीमती रत्न खुद के लिए रख लिए। बेचारे असुरों के हाथ सिर्फ वारुणी लगी। चौदहवा विनाशकारी रत्न हलाहल सामने आया तो सृष्टि पर विनाश का खतरा उत्पन्न हो गया। इस विष का कोई दावेदार नहीं मिला। सृष्टि को इस विष के घातक प्रभाव से बचाने के लिए देवों और असुरों में समान रूप से प्रिय शिव ने यह जहर खुद पी लेना स्वीकार किया।
यह नीला जहर उनके कंठ में एकत्र हो गया जिसके कारण उन्हें नीलकंठ का नाम मिला। उनके शरीर में विष का ताप कम करने के लिए देवों ने दूर-दूर से गंगाजल लाकर उनका अभिषेक किया था। तब से शिवभक्तों द्वारा सावन के महीने में पवित्र गंगा से जल लेकर भारत के विभिन्न ज्योतिर्लिंगों और शिव मंदिरों में अर्पित करने की परंपरा चली आ रही है। शिव के प्रति सम्मान इतना कि भक्त पवित्र जल के कांवर के साथ ‘बोल बम’ का जयघोष करते सैकड़ों मील की पैदल और कष्टपूर्ण यात्रा कर उनके मंदिर पहुंचते हैं व उन्हें प्रसन्न करने के लिए विल्व पत्र चढ़ाते है ।शिव जी को विल्व पत्र चढ़ाने का बड़ा ही महत्व है।
शिवपुराण में बेलपत्र के महत्व का विस्तार से उल्लेख किया गया है। शिवपुराण के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अलग अलग तरह की पूजा की जाती है। कई प्रकार के पुष्प, पत्तों आदि का अर्पण शिव शंभू पर किया जाता है। बेलपत्र, बेर, आदि से शिव का पूजन करने पर शिव की आसीम अनुकंपा मिलती है। मान्यता है कि, तीनों लोकों में जितने पुण्य तीर्थ हैं वे सारे बेल पत्र के मूल मूल भाग में निवास करते हैं। जो लोग बेल पत्र के साथ शिव की आराधना करते हैं उन्हें शिव की आसीम अनुकंपा प्राप्त होती है। साथ ही जो मनुष्य बेलपत्र के जड़ के जल से अपने मस्तिष्क को सींचता है वह संपूर्ण तीर्थों में स्नान के बराबर फल प्राप्त होता है ।
बेलपत्र में तीन पत्तियां एक साथ जुड़ी होती हैं लेकिन इन्हें एक ही पत्ती मानते हैं. भगवान शिव की पूजा में बेलपत्र प्रयोग होते हैं और इनके बिना शिव की उपासना सम्पूर्ण नहीं होती. पूजा के साथ ही बेलपत्र के औषधीय प्रयोग भी होते हैं. इसका प्रयोग करके तमाम बीमारियां दूर की जा सकती हैं ।ज्योतिष के जानकारों की मानें तो जब भी आप महादेव को बेलपत्र अर्पित करें तो कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है क्योंकि गलत तरीके से अर्पित किए हुए बेलपत्र शिव को अप्रसन्न भी कर सकते हैं, बेल पत्र के चयन संबंधित कुछ सावधानियां निम्न है-
- एक बेलपत्र में तीन पत्तियां होनी चाहिए।
- पत्तियां कटी या टूटी हुई न हों और उनमें कोई छेद भी नहीं होना चाहिए।
- भगवान शिव को बेलपत्र चिकनी ओर से ही अर्पित करें।
- एक ही बेलपत्र को जल से धोकर बार-बार भी चढ़ा सकते हैं।
- शिव जी को बेलपत्र अर्पित करते समय साथ ही में जल की धारा जरूर चढ़ाएं।
- बिना जल के बेलपत्र अर्पित नहीं करना चाहिए।
- बेलपत्र का केवल दैवीय प्रयोग नहीं है ।यह तमाम औषधियों में भी काम आता है । इसके प्रयोग से आपकी सेहत से जुड़ी तमाम समस्याएं चुटकियों में हल होती हैं।
- बेलपत्र का रस आंख में डालने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।
- बेलपत्र का काढ़ा शहद में मिलाकर पीने से खांसी से राहत मिलती है।
- सुबह 11 बेलपत्रों का रस पीने से पुराना सिरदर्द भी ठीक हो जाता है।