खरमास के महीने में दान का विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि खरमास के दौरान किसी गरीब, आर्थिक तौर पर असहाय, जरूरतमंदों की मदद अवश्य करनी चाहिए। इस महीने में गौदान और गौसेवा से भी पुण्य प्राप्त होता है।
पौराणिक कथाओंके अनुसार, खरमास में खर का मतलब गधे से है। मार्कण्डेय पुराण के मुताबिक, सूर्य देव सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर सूर्य की परिक्रमा करते हैं। सारी दुनिया सही तरीके से कार्यों को संपूर्ण कर सके इसके लिए सूर्यदेव को एक क्षण रुकने और धीमा होने का अधिकार नहीं है। सूर्य की लगातार यात्रा करने के कारण एक दिन उनके रथ के सातों घोड़े थककर एक तालाब के किनारे रुक जाते हैं ताकि पानी पी सकें। घोड़ों के पानी पीने के दौरान सूर्य को अपना दायित्व याद आता है और तालाब के पास ही खड़े दो गधों को रथ में जोतक अनवरत यात्रा के लिए निकल जाते हैं। गधों की धीमी गति से पूरे पौष महीने में ब्रह्मांड की यात्रा करते रहे। इस कारण सूर्य का तेज बहुत कमजोर हो धरती पर प्रकट होता है। इन्हीं कारणों से खरमास के दौरान खासकर किसी भी शुभ कार्यों को करने की मनाही होती है।
शास्त्रानुसार खरमास के दौरान किसी भी देवी-देवता की निंदा करना अनिष्टकारक माना गया है। खरमास के दौरान किसी भी प्रकार का मांस और शराब का सेवन नहीं करना चाहिए। मान्यता है कि खरमास के दौरान मांस-मदिरा का सेवन करने से धन और शौर्य की हानि होती है। खरमास के दौरान घर पर भिक्षा मांगने आने वाले को खाली हाथ नहीं लौटाना चाहिए। इस महीने में दान अवश्य करना चाहिए। खरमास के दौरान जमीन पर सोना शुभ माना जाता है।