चंद्रशेखर की रिपोर्ट निगेटिव है। शायद यही प्रकृति का इंसाफ है। जिस अंधियारे कोरोना काल में लोग अपनों की लाशें लेने से इनकार कर रहे हैं, यह दोस्ती वाक्य उम्मीदें जगाती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार असिलाभार गांव का बेरोजगार चंद्रशेखर को उसका दोस्त जनवरी में उसे फरीदाबाद ले गया और काम दिलाया। चंद्रशेखर के दोस्त के साथ गांव का एक युवक पहले से रह रहा था। उसने चंद्रशेखर को भी घर में रख लिया। लॉकडाउन के दौरान 18 अप्रैल को चंद्रशेखर का दोस्त बेहोश हो गया। दूसरा युवक इसे कोरोना वायरस संक्रमित समझ कर साथ छोड़ गया।
इस दौरान चंद्रशेखर ही दोस्त को फरीदाबाद में जिला अस्पताल ले गया। पता चला कि उसे दिल की बीमारी है। हालत ठीक नहीं हुई तो उसे दिल्ली के सफदरजंग ले गया। इसकी सूचना मिलते ही चंद्रशेखर के घर से फोन आने लगे कि अपनी जान जोखिम में मत डालो। लेकिन सारी कसमें तोड़ उसका इलाज कराया। फिर एंबुलेंस से बीमार दोस्त को लेकर गोरखपुर पहुंचे गया। चंद्रशेखर ने बताया कि दोस्त के संक्रमित होने पर मेरें घर वाले कसमें खिलाने लगे। लेकिन मुझे लगा कि दोस्त को यूं अकेला छोड़ना तो जीते-जी मरने जैसा है। किसे मुंह दिखा पाऊंगा।
बताया कि दोस्त के बेहोश होने पर दूसरा युवक इसे कोरोना समझ भाग गया और चंद्रशेखर के घर में सूचना दे दी। चंद्रशेखर को मां-पत्नी के फोन आने लगे पर वह नहीं माना। बीमार दोस्त के बेटे का कहना है कि चंद्रशेखर चाचा न होते तो पिता जी का क्या होता, यह सोच कर हम कांप जाते हैं। वहीं गोरखपुर पहुंचने पर जब दोनों की जांच की गई। जिसमें बीमार दोस्त कोरोना पॉजिटिव मिला तो मेडिकल कॉलेज में भर्ती किया गया। चंद्रशेखर को क्वारंटीन कर उसकी भी दो बार जांच हुई। रिपोर्ट निगेटिव आई। बीते सोमवार को चंद्रशेखर जब घर पहुंचा तो बीवी की आंखें बरबस ही छलक पड़ीं।