सेबी ने FO सेगमेंट को सट्टे की तरह इस्तेमाल करने की कोशिशों को रोकने के लिए इंडेक्स डेरिवेटिव्स के लॉट साइज को बढ़ाकर न्यूनतम 15 लाख रुपये करने की कही थी बात, नतीजतन एनएसई ने निफ्टी के लॉट साइज को 25 से बढ़ाकर 75 व बैंक निफ्टी के लॉट साइज को 15 से बढ़ाकर किया 30
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F&O कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए बढ़ा लॉट साइज
नई दिल्ली (ब्यूरो डेस्क)। बाजार नियामक सेबी ने ऑप्शन ट्रेडिंग में रिटेल निवेशकों के अति उत्साह को कम करने के लिए जो नए प्रतिबंध लगाए थे। उसे लेकर देश के दो सबसे बड़े स्टॉक एक्सचेंज एनएसई और बीएसई ने कवायद शुरू कर दी है। दोनों एक्सचेंज ने इंडेक्स फ्यूचर्स एंड ऑप्शंस (F&O) कॉन्ट्रैक्ट्स के लिए लॉट साइज बढ़ा दिए हैं। नए कांट्रैक्ट 20 नवंबर से लागू होंगे।
अब प्रीमियम भी हो जाएगा दोगुना
सेबी ने F&O सेगमेंट को सट्टे की तरह इस्तेमाल करने की कोशिशों को रोकने के लिए इंडेक्स डेरिवेटिव्स के लॉट साइज को बढ़ाकर न्यूनतम 15 लाख रुपये करने की बात कही थी। नतीजतन, एनएसई ने निफ्टी के लॉट साइज को 25 से बढ़ाकर 75 कर दिया है, जबकि बैंक निफ्टी के लॉट साइज को 15 से बढ़ाकर 30 किया गया है। बीएसई ने सेंसेक्स कॉन्ट्रैक्ट्स के लॉट साइज को 10 से बढ़ाकर 20 और बैंकेक्स कॉन्ट्रैक्ट्स के लॉट साइज को 15 से बढ़ाकर 30 कर दिया है। यानी अब इनका प्रीमियम भी दोगुना हो जाएगा।
सभी तरह के कांट्रैक्ट पर लागू होंगे लॉट साइज
एक्सचेंजों के मुताबिक, लॉट आकार में हुए यह बदलाव वीकली, मंथली, क्वार्टरली, और हाफ ईयरली सभी तरह के कांट्रैक्ट पर लागू होंगे। मौजूदा वीकली और मंथली एक्सपायरी कांट्रैक्ट अपनी संबंधित एक्सपायरी तक पुराने लॉट साइज़ के साथ जारी रहेंगे। क्वार्टरली और हाफ ईयरली मौजूदा कांट्रैक्ट 24 दिसंबर को बैंक निफ्टी के लिए और 26 दिसंबर को निफ्टी के लिए नए लॉट साइज़ में परिवर्तित हो जाएंगे। मार्च 2025 और उसके बाद की समाप्ति तिथि वाली लंबी अवधि के कांट्रैक्ट 27 दिसंबर तक अपने मौजूदा मार्केट लॉट को बनाए रखेंगे, जिसके बाद सभी दीर्घ-अवधि वाले बीएसई सेंसेक्स अनुबंधों के लिए लॉट साइज नए लॉट में बदल जाएंगे।
रिटेल ट्रेडर्स के लिए बदल जाएगी ऑप्शन ट्रेडिंग
लॉट साइज में बढ़ोतरी का मतलब है कांट्रैक्ट की नेशनल वैल्यू में इजाफा और नतीजतन प्रीमियम में वृद्धि। यानी जिस ऑप्शन लॉट को पहले 14-15 हजार रुपए में खरीदा जा सकता था, अब उसके लिए 28 से 30 हजार रुपए चुकाने होंगे। उदाहरण के लिए, पहले यदि कोई 200 रुपये के प्रीमियम के साथ निफ्टी का ऑप्शन खरीदना चाहता था, तो उसे 200 रुपए x 25 रुपए (प्रीमियम x लॉट साइज़) का भुगतान करना पड़ता था। वहीं अब 200 रुपए x 75 = 15,000 रुपये प्रति लॉट का भुगतान करना होगा।
ऑप्शन के बाजार मूल्य को बताता हैं प्रीमियम
प्रीमियम टर्नओवर किसी ऑप्शन के बाजार मूल्य को बताता है, जबकि नेशनल टर्नओवर उस डेरिवेटिव के कांट्रैक्ट का कुल मूल्य होता है। उदाहरण के लिए, शुक्रवार को बंद होने पर 31 अक्टूबर के 81,000 सेंसेक्स कॉल ऑप्शन का प्रीमियम 104.50 रुपए प्रति शेयर (एक कांट्रैक्ट में 10 शेयर) था। ऐसे में कॉल का प्रीमियम 1,045 (104.50 x 10) रुपए होगा, जबकि नेशनल प्राइस 8,11,045 (81,000 + 104.50 x 10) रुपए होता है।
शेयर बाजार के लिए आय का मुख्य स्रोत STT
प्रीमियम टर्नओवर शेयर बाजारों के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि ऑप्शन ट्रेडिंग में सरकार सिक्युरिटी ट्रांजैक्शन ट्रैक्स (0.1%) प्रीमियम पर ही लगाती है। एक्सचेंज भी ट्रांजैक्शन फीस प्रीमियम पर वसूलते हैं, न कि नोशनल टर्नओवर पर। ट्रांजैक्शन फीस किसी भी शेयर बाजार के लिए उसकी आय का मुख्य स्रोत होते हैं।
इन बदलावों का एक्सचेंज पर कितना होंगा असर
ऑप्शन प्रीमियम में 71% वीकली कॉन्ट्रैक्ट से आते हैं, जबकि 29% प्रीमियम मंथली कांट्रैक्स से मिलता है। इनवेस्टमेंट फर्म जेफरीज के मुताबिक, एनएसई के तीन और बीएसई का एक वीकली कांट्रैक्ट बंद होने से प्रीमियम में 40 फीसदी की कमी आएगी। हालांकि, निवेशकों के वीकली कांट्रैक्ट में शिफ्ट होने से यह कमी 25% से 30% के बीच रह जाने का अनुमान है।
क्या BSE को इस बदलाव से होंगा ज्यादा फायदा
बीएसई के शेयरों में इस महीने की पहली तारीख से लेकर 14 तारीख के बीच 40 फीसदी की जोरदार उछाल देखने को मिली थी। कंपनी के शेयर एक अक्टूबर के 3580 रुपए से बढ़कर 14 अक्टूबर को 4989 रुपए पर पहुंच गए, जो इसका अब तक का उच्चतम स्तर है।
BSE का बंद होंगा एक वीकली ऑप्शन कांट्रैक्ट
बीएसई में उछाल की वजह उम्मीद थी कि सेबी का यह कदम एनएसई की तुलना में बीएसई को कम नुकसान पहुंचाएगा, क्योंकि एनएसई जहां 4 वीकली ऑप्शन कांट्रैक्ट चलाता है, वहीं बीएसई सिर्फ दो वीकली ऑप्शन कांट्रैक्ट की पेशकश करता है। यानी सेबी के आदेश के चलते एनएसई को तीन वीकली ऑप्शन कांट्रैक्ट बंद करने होंगे, जबकि बीएसई को सिर्फ एक वीकली ऑप्शन कांट्रैक्ट बंद करना होगा।
प्रतिबंधों का BSE पर पड़ेगा गंभीर असर
हालांकि, इस डेरिवेटिव प्रतिबंध के प्रभाव का आकलन इतना सरल नहीं है। विश्लेषकों का मानना है कि एनएसई की तुलना में बीएसई का ऑप्शन प्रीमियम टर्नओवर कम है और इसलिए इस पर भी प्रतिबंधों का गंभीर असर पड़ेगा। बीएसई का ट्रांजैक्शन रेवेन्यू नए प्रतिबंधों के चलते और घट सकता है।
BSE के शेयर में 100% से अधिक की वृद्धि
हाल में आई जेफरीज की एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, सेबी के नए एफएंडओ फ्रेमवर्क के जारी होने के बाद बीएसई के शेयर में 100% से अधिक की वृद्धि दर्ज हुई है। इस तेजी का कारण यह उम्मीद है कि नए प्रतिबंधों के बाद डेरिवेटिव ट्रेडिंग में एनएसई में ट्रेड घटेगा, उसके कस्टमर बीएसई की ओर आएंगे और इससे बीएसई की बाजार हिस्सेदारी बढ़ेगी। लेकिन हकीकत इससे दूर है।
मंथली कांट्रैक्ट पर नहीं पड़ा कोई असर
नए F&O ढांचे में मंथली कांट्रैक्ट पर कोई असर नहीं पड़ा है और कुल ऑप्शन बाजार में इसकी करीब 30% हिस्सेदारी है। इस सेगमेंट में बीएसई का मार्केट शेयर मात्र 10% है। वहीं, यह उम्मीद करना कि वीकली कांट्रैक्ट में बीएसई 40-50% बाजार हिस्सेदारी हासिल कर लेगा अति-आशावादी लगता है।
BSE का प्रीमियम टर्नओवर अभी NSE से पीछे
आंकड़े बताते हैं, चालू वित्त वर्ष में अब तक इंडेक्स ऑप्शन में बीएसई का नोशनल-टू-प्रीमियम टर्नओवर रेश्यो 1,442 है, जो एनएसई के 605 की तुलना में दोगुने से अधिक है। इसका मतलब है कि बीएसई का प्रीमियम टर्नओवर अभी एनएसई से काफी पीछे है।
NSE द्वारा ली गई हैं शुरुआती बढ़त
बता दें, चालू वित्त वर्ष में 15 अक्टूबर तक इंडेक्स ऑप्शंस (प्रीमियम टर्नओवर) में एनएसई की बाजार हिस्सेदारी 88.5% थी। विश्लेषकों का मानना है कि एनएसई की तुलना में बीएसई का प्रीमियम टर्नओवर कम होने का कारण कांट्रैक्ट लांच करने और सफलता से चलाने में एनएसई द्वारा ली गई शुरुआती बढ़त है।
डेरिवेटिव में BSE की तुलना में NSE क्यों हैं आगे
एनएसई फरवरी 2019 से ही निफ्टी पर लिक्विड और सफल कॉन्ट्रैक्ट चला रहा है, जबकि बीएसई ने मई 2023 में सेंसेक्स ऑप्शंस को फिर से लॉन्च किया था। साथ ही, निफ्टी ऑप्शंस के मंथली कॉन्ट्रैक्ट सेंसेक्स के मुकाबले काफी अधिक लिक्विड हैं।
निफ्टी ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट अधिक हैं मैच्योर
पिछले साल ही एक अलग एक्सपायरी डेट के साथ रीलॉन्च हुए सेंसेक्स ऑप्शंस की तुलना में वीकली निफ्टी ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट अधिक मैच्योर हैं। प्रीमियम टर्नओवर बढ़ाने के लिए बीएसई के मंथली ऑप्शंस को ट्रेडर्स को अपनी ओर खींचना होगा।
संस्थागत निवेशकों की अधिक भागीदारी
कई ब्रोकिंग फर्म के शीर्ष अधिकारियों ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि एनएसई के हाई प्रीमियम टर्नओवर की दो वजहें हैं। पहला, इसके मंथली ऑप्शंस की लिक्विडटी काफी ज्यादा है और दूसरा इसके वीकली कांट्रैक्ट्स में संस्थागत निवेशकों की अधिक भागीदारी है। वहीं, बीएसई पर प्रीमियम टर्नओवर का अधिकांश हिस्सा एक्सपायरी के करीब होता है, जब आमतौर पर प्रीमियम कम हो जाता है।
फिर दोनों ही एक्सचेंज को होगा नुकसान
ब्रोकर्स का कहना है कि बाजार नियामक उपायों को दोनों एक्सचेंज के लिए समान अवसर बनाने के रूप में देख रहा है, लेकिन वीकली ऑप्शन कांट्रैक्ट को प्रति एक्सचेंज एक पर सीमित करने और 20 नवंबर से लॉट मूल्य को वर्तमान के 5 से 10 लाख रुपए से बढ़ाकर 15 से 20 लाख रुपए करने से दोनों ही एक्सचेंज को नुकसान होगा।
ट्रेडिंग वॉल्यूम में भी आएगी कमी
बता दें, एनएसई फिलहाल चार वीकली इंडेक्स ऑप्शन एक्सपायरी कांट्रैक्ट (निफ्टी मिडकैप सेलेक्ट, फिनिफ्टी, बैंक निफ्टी और निफ्टी) उपलब्ध कराता है। वहीं, बीएसई सेंसेक्स और बैंकेक्स के रूप में ऐसे दो कांट्रैक्ट ऑफर करता है। 20 नवंबर से एनएसई सिर्फ निफ्टी वीकली कांट्रैक्ट और बीएसई केवल सेंसेक्स वीकली कांट्रैक्ट चलाएगा, इससे दोनों एक्सचेंज के ट्रेडिंग वॉल्यूम में भी कमी आएगी।
रिपोर्ट- नई दिल्ली ब्यूरो डेस्क