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देवरिया लोकसभा सीट का समीकरण: क्‍या बीजेपी लगातार तीसरी बार विपक्ष को पटखनी देकर लगाएगी जीत की हैट्रिक या फिर विपक्ष उसे करेगा चित

"2014 और 2019 लगातार दो चुनावों में करारी हार का सामना कर चुका विपक्ष इस बार बीजेपी को हराने के लिए हर दांव आजमाने को हैं तैयार"

खबरें आजतक Live

देवरिया (ब्यूरो, उत्तर प्रदेश)। यूपी की देवरिया लोकसभा सीट पूर्वांचल में अकेली ऐसी सीट है जिस पर 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उम्र की वजह से अपने दिग्‍गज नेता कलराज मिश्र (राजस्‍थान के राज्‍यपाल) का टिकट काट दिया था। उनकी जगह पर पार्टी ने पूर्व प्रदेश अध्‍यक्ष रमापति राम त्रिपाठी को टिकट दिया, जिन्‍होंने 57.17 फीसदी मत पाकर न सपा-बसपा महागठबंधन के प्रत्याशी विनोद जायसवाल को 2,46,481 वोटों के भारी अंतर से हरा दिया। बल्कि तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के नियाज अहमद समेत अन्य सभी नौ दावेदारों की जमानत जब्त करा दी। 2014 और 2019 लगातार दो चुनावों में करारी हार का सामना कर चुका विपक्ष इस बार बीजेपी को हराने के लिए हर दांव आजमाने को तैयार है। सबके साथ आने की बातें हो रही हैं। ऐसे में क्षेत्र में हर कोई अपने अपने ढंग से सोच रहा है कि क्‍या बीजेपी लगातार तीसरी बार विपक्ष को पटखनी देकर जीत की हैट्रिक लगाएगी या फिर विपक्ष उसे चित कर देगा। देवरिया एक ऐसा जिला है, जहां के लोग देश के लगभग हर इलाके में मिल जाते हैं। फिर वो चाहे सुदूर उत्‍तर पूर्व का इलाका हो या फिर कश्‍मीर का। धुर दक्षिणी प्रांत हों या गुजरात के पश्चिमी तट। देवरिया वाले हर जगह आपको मिल जाएंगे। मेहनत मजदूरी करते, अपने घर-परिवार के लिए संघर्ष करते। ऐसे जुझारु लोगों की धरती हमेशा से तप और साधना का केंद्र रही है।

प्रसिद्ध संत देवरहा बाबा ने यहीं बरसों साधना की। देवरिया देश के प्रधानमंत्रियों और राष्‍ट्रपतियों तक को आकर्षित करता रहा है। देवरिया का क्रांतिकारी इतिहास रहा है। 14 अगस्‍त 1942 को यहीं पर 13 साल के एक छात्र रामचंद्र ने कलेक्‍ट्रेट पर बिट्रिश झंडे की जगह तिरंगा फहरा दिया था। बदले में अंग्रेजों ने गोलियां बरसाकर चार दोस्‍तों के साथ उन्‍हें शहीद कर दिया था। यहां के कई स्वतंत्रता सेनानियों के परिवारों को सरकार ने आजादी के बाद उत्‍तराखंड के तराई में जमीनें दी थीं। हैं। आज भी वे परिवार वहां बसे हुए हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा नेतृत्व ने उम्र के कारण तब के सांसद कलराज मिश्र का टिकट काट दिया था। वह यहां से 2014 में जीते और केंद्र सरकार में मंत्री बने थे। 75 साल से ज्यादा उम्र होने के कारण उन्हें मंत्री पद से भी मुक्त कर दिया गया था। हालांकि बाद में बीजेपी ने उन्‍हें राज्‍यपाल बनाकर पहले हिमाचल फिर राजस्‍थानी भेज दिया। 2019 में पार्टी ने कलराज का टिकट काटकर रमापति को उम्‍मीदवार बनाया। रमापति, पार्टी के पूर्व अध्‍यक्ष रहे हैं। वह संतकबीरनगर के 'जूताकांड' वाले तबके सांसद शरद त्रिपाठी (दिवंगत) के पिता हैं। रमापति के खिलाफ सपा-बसपा महागठबंधन बिनोद जायसवाल को उतारा था। वह बसपा के उम्‍मीदवार थे। उस चुनाव में रमापति की शानदार जीत हुई। उन्‍हें सभी चरणों में 55 फीसदी से अधिक मत मिले।

कुल 5,75,515 मत मिले जबकि दूसरे स्थान पर रहे बसपा के विनोद जायसवाल को 3,28,634 मत। सपा से गठबंधन के बावजूद बसपा उम्‍मीदवार के वोटों का प्रतिशत 32.64 ही रहा। तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस के नियाज अहमद अपनी जमानत भी नहीं बचा सके। उन्‍हें इसके लिए जरूरी छह फीसदी से भी कम 50,809 वोट मिले थे। इसके अलावा भारतीय आवाम पार्टी के इसरार अहमद, समाजवादी समाज पार्टी के ओंकार सिंह, राष्ट्रीय ओलेमा काउंसिल के चंदन कुमार, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के जितेंद्र, पीस पार्टी के बिरजा, मनुवादी पार्टी के मनोज कुमार मिश्र और निर्दलीय ब्रजेंद्र मणि और रामाशीष राय एक फीसदी भी वोट नहीं पा सके। 1.32% फीसदी लोगों ने नोटा का इस्‍तेमाल किया था। अब आपको बता दें कि विनोद कौन हैं तो विनोद जायसवाल के ससुर गोरख प्रसाद जायसवाल 2009 में देवरिया से सांसद रहे। वह अपने ससुर की विरासत लेकर मैदान में उतरे थे। लेकिन उनकी उम्‍मीदें परवान नहीं चढ़ सकीं। मोदी और योगी लहर में उम्‍मीदें तो कांग्रेस के नियाज अहमद की भी टूट गईं। नियाज इसके पहले 2012 में पथरदेवा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्‍याशी बने थे। लेकिन ऐन वक्‍त पर उनका टिकट कट गया था। बाद में उस चुनाव में नियाज निर्दलीय लड़े और हार गए। नियाज ने 2014 का भी चुनाव लड़ा था लेकिन हार गए थे।

वहीं विपक्षी एकता से पड़ने वाले असर की बात करें तो देवरिया में धीरे धीरे माहौल चुनावी हो रहा है। विभिन्‍न मुद्दों पर लोग अपनी राय रखने लगे लगे हैं। भाजपा के लोग जहां मोदी-योगी सरकार की उपलब्धियां गिना रहे हैं। वहीं सपा, बसपा या कांग्रेस के समर्थन सरकार की नाकामियां गिना रहे हैं। इस बीच जानकारों का एक बड़ा तबका मानता है कि विपक्ष यदि एकजुट हुआ तो निश्चित ही पहले से मजबूत स्थिति में होगा लेकिन इस एकजुटता में बसपा है या नहीं यह बहुत मायने रखेगा। जातीय समीकरण की बात करें तो एक अनुमान के अनुसार देवरिया लोकसभा क्षेत्र में ब्राह्मण 27%, अनुसूचित जाति 14%, अल्पसंख्यक 12%, यादव 8%, वैश्य 8%, सैंथवार 6%, कुर्मी 5%, क्षत्रिय 5%, कायस्थ 4%, राजभर 4%, निषाद 3% हैं। इनके अलावा कुम्हार, चौहान और अन्य मिलाकर करीब 4% मतदाता हैं। 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में बसपा के गोरख प्रसाद जायसवाल महज 30.73 फीसदी वोट हासिल कर देवरिया से चुनाव जीत गए थे। उस चुनाव में इस सीट से कुल 12 लोगों ने दावेदारी की थी। गोरख प्रसाद जायसवाल को कुल 2,19,889 वोट मिले थे, जबकि उनके दूसरे नंबर पर रहे बीजेपी के श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी को 1,78,110 वोट। वहीं सपा के मोहन सिंह 1,51,389 वोट हासिल कर तीसरे स्थान पर रहे थे। उस चुनाव में कांग्रेस के बालेश्वर यादव को 91,488 वोट मिले थे।

देवरिया लोकसभा क्षेत्र पर एक नजर डालें तो यहां की कुल जनसंख्या 2818561 तथा कुल मतदाता 1735574 हैं, जिनमें पुरूष मतदाता 950812 व महिला मतदाता 784666 तथा 96 अन्य मतदाता के रूप में पंजीकृत हैं। देवरिया लोकसभा क्षेत्र में आने वाले विधानसभा क्षेत्र और वहां के विधायकों की बात करें तो देवरिया लोसकभा सीट के तहत आने वाले पांचों विधानसभा क्षेत्रों पर फिलहाल भाजपा का कब्‍जा है। 2022 के विधानसभा चुनाव में पथरदेवा सीट पर सूर्यप्रताप शाही (यूपी सरकार में कृषि मंत्री), देवरिया सदर सीट पर बीजेपी के शलभ मणि त्रिपाठी, रामपुर कारखाना सीट पर सुरेंद्र चौरसिया, तमुकुहीराज सीट पर आसिम कुमार और फाजिलनगर सीट पर सुरेंद्र कुशवाहा ने जीत हासिल की। अब तक में देवरिया की कमान की बात करें तो सरयू-1952-कांग्रेस, रामजी वर्मा-1957-प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, विश्वनाथ राय-1952, 1967, 1971-कांग्रेस, उग्रसेन-1977-भारतीय लोकदल, रामायण राय-1980 -कांग्रेस, राजमंगल पाण्डेय-1984 कांग्रेस, 1989 जनता दल, मोहन सिंह-1991 जनता दल, 1998 व 2004 सपा, श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी-1996, 1999-भाजपा, गोरख प्रसाद जायसवाल-2009-बसपा व कलराज मिश्र-2014 में भाजपा के टिकट पर यहां की कमान संभाल चुके हैं।

रिपोर्ट- देवरिया ब्यूरो डेस्क

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