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इस फूलों की नगरी में गंदगी, बीमारियां व मुत्रालय का केन्द्र क्यों बनी हैं यें नहर, यें विभाग क्यों बना हुआ हैं बेखबर, पूछता हैं सिकन्दरपुर

"सरकार स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर लाखों करोड़ों रुपए कर रही है खर्च, पर यह अभियान बिल्कुल ही साबित हो रहा है फिसड्डी, सिकन्दरपुर बस स्टैंड चौराहे से गुजरने वाली नहर तमाम गंभीर बीमारियों को दे रही आमंत्रण"

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सिकन्दरपुर (बलिया, उत्तर प्रदेश)। एक तरफ भारत सरकार स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर लाखों करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि कई जगहों पर यह अभियान बिल्कुल ही फिसड्डी साबित हो रहा है। बताते चले कि स्थानीय क्षेत्र के सिकन्दरपुर बस स्टैंड चौराहे से गुजरने वाली नहर तमाम गंभीर बीमारियों को आमंत्रण दे रही है। नहर विभाग इस नहर में पानी व पर्याप्त साफ सफाई को लेकर बिल्कुल ही बेखबर व बेपरवाह नजर आ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि साफ सफाई के नाम पर साल दो साल में एक बार जेसीबी मशीन लगाकर नहर की साफ सफाई कराई जाती है। साफ सफाई के नाम पर नहर का सारा मलबा जेसीबी से निकालकर नहर के किनारे छोड़ दिया जाता है, जिससे दुर्गंध और भी विकराल रूप धारण कर लेता है। ज्ञात हो कि यह नहर अब पानी नहीं बल्कि गंदगी, गंभीर बीमारियों व मुत्रालय का पर्याय बन कर रह गया है। सिकन्दरपुर बस स्टेशन चौराहे से गुजरने वाली यें नहर अब दोनों तरफ से एक बड़ें नाले के रूप में तब्दील हो चुकी है, जिसके चलतें इस नहर के आसपास से गुजरने वाले लोगों को अपने नाक पर रुमाल रखकर आना जाना पड़ता हैं।

नहर के दोनों तरफ रहने वालें स्थानीय लोगों का कहना है कि नहर के दुर्गंध से उन लोगों का जीना दूभर हो गया है। आए दिन इस वजह से बच्चों की तबीयत भी खराब हो जा रही है। ज्ञात हो कि सिकन्दरपुर थानें के समीप से गुजरती नहर जो हरदिया बॉध तक जाती है, जबकि सिकन्दरपुर थाना मोड़ से गांग किशोर गांव तक का अधिकतर इलाका रिहायशी इलाके मे तब्दील हो चुका है। सिकन्दरपुर स्टेशन के पुर्वी व पंश्चिमी दोनो तरफ लगभग 500 मीटर तक ये नहर एक गंध भरे बदबूदार नाले व कूड़ेदान के रूप मे तब्दील हो चुकी है, जिसके चलते नहर के अगल बगल बसे निवासी बहुत ही परेशान है। बताते चले की स्टेशन पर नहर के दोनों किनारे व आस पास बहुत सारें परिवार निवास करतें है। फिर भी इस गंदे बदबुदार माहौल मे रहना इन तमाम परिवार वालो की मजबुरी का सबब बन कर रह गया है। मुख्य बस स्टैण्ड चौराहे पर स्थित तमाम होटल और बहुत सारे लोग जो बेरोजगारी से त्रस्त होकर ठेले पर व्यवसाय करने वाले लोगो से भरा पड़ा है। इन सबका अपना कुड़ा और गंदा पानी नाली के माध्यम से नहर मे प्रवाहित होता है, जिससे नहर में जमा गंदा पानी स्थानीय परिवारों के लिये तमाम बीमारियों को आमंत्रित कर रहा है।

घोर गंदगी की वजह से यहां पर मोदी व योगी सरकार के "स्वच्छ भारत अभियान" पर करारा धक्का तो लगा ही है। पर स्थानीय निवासियों को शक हो रहा है कि यह अभियान कही खिलवाड़ तो नही या सच मायनो मे ग्राम पंचायत, जिला पंचायत, आदर्श नगर पंचायत व शासन प्रशासन को इन केन्द्रीय व राज्य स्तरीय योजनाओं का सम्मान करना ही नही आ रहा। अक्सर इस नहर पर आम जनता को लघुशंका करते हुये देखा जाता है, जिससे नहर किनारे बसे आम निवासियों की बच्चियों, औरते घर से निकलने मे संकोच करती है व कतराती भी है। नहर पर स्थित कई शिक्षण संस्थान संचालित होतें हैं। इन शिक्षण संस्थानों मे आनें जानें वाली छात्राएं भी इस लज्जा का शिकार होती रहती हैं। पर इस मजबूरी को कौन समझे। इसी आस मे स्थानीय निवासी किसी बड़ें बदलाव के सपनों को संजोए बैठे है। सबसे बड़े दुर्भाग्य की बात यह है कि इस सिकन्दरपुर बस चौराहे पर यात्री या आम नागरिकों के लिए एक मूत्रालय या शौचालय तक का निर्माण नही हो सका हैं, जिसके चलते आम जनता इस नहर को गंदा और बदबूदार बनाने के लिए मजबूर है।

क्या इस मुद्दे पर स्थानीय व जिला प्रशासन का इस तरफ कोई ध्यान नही जाता, जबकि सारे अधिकारी इस नहर को पार करके ही गुजरते है। पर दुर्भाग्य की इन अधिकारियों के गाड़ियों में लगें शानदार काले शीशे इन्हें ऐसे गंदे मंजर को देखने ही नही देते। अब इस प्रकरण में प्रशासन व जनप्रतिनिधियों पर कई सवाल उठते है। पहला सवाल ये कि इस स्थानीय नहर की स्थिति इतनी बदतर क्यों है और इसके बदहाल स्थिति के लिये जिम्मेदार कौन है। अगर इसे नहर की संज्ञा दी गयी है, तो इस नहर मे समयबद्ध तरीके से पानी आये कितने साल हो गये। नहर विभाग ने इस नहर की सफाई के लिये क्या कदम उठाये। जब नहर मे पानी ही नही आता तो इसे कुड़ादान और नाले के रूप मे क्यो पाला पोसा जा रहा है। इस मुद्दे पर और भी बहुत सारे सवाल है पर हर सवाल इस मामले मे खुद ही शर्मिंदा है। अपने सवालों को लेकर, जिसका जवाब कही से भी मिले ये उम्मीद ही आस्तित्व मे नही है।

रिपोर्ट- विनोद कुमार गुप्ता

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